निवेदन ज़िंदगी से है ...
कभी आकर तू मुझसे रूबरू मिल तो सही
मैं खोई हूँ तुझमें ही कहीं पर तू तो है यहीं
तुझे सँवारने के लिए मैं दिन - रात खटती हूँ
तेरा साथ पाने को मैं अपना चैन गँवाती हूँ
तुझे जीने की चाह में छूट रहा मेरे अपनों का साथ
तू जहाँ भगाती मैं भागती हूँ फिर भी नहीं आती हाथ
निवेदन तुझसे है - चलते हैं दोनों साथ मिलकर
काटने में वो मज़ा नहीं जो आता है तुझे जीकर