Remembering Lt. Neeraj On the eve of his birth anniversary ( belated )
गोपाल प्रसाद ' नीरज ' की एक उत्तम कविता के कुछ अंश ( यह फिल्म नयी उम्र की नयी फसल का एक गीत भी है ) -
नींद ही खुली न थी कि है धूप ढल गयी
पाँव जब तलक उठे कि जिंदगी फिसल गयी
पात पात झर गए कि शाख शाख जल गयी
चाह तो निकल सकी न , पर उम्र निकल गयी
गीत अश्क बन गए , स्वप्न हो दफन गए
और हम झुके झुके , मोड़ पर रुके रुके
उम्र के चढाव का उतार देखते रहे
कारवां गुजर गया , गुबार देखते रहे ….