यू ही गुजरता गया ये साल,
ग़मों का दामन पकड़े हुए,
राह हमे ख़ुद चलना था,
मंजिल का रास्ता कहीं और था,
ना जाने किस रास्ते भटकते रहे हम,
यू ही साल गुजरता गया,
कुछ पाने की चाह में दर बदर भटकते रहे हम,
कुछ मंजिलें मिली हमे,
उसकी भी कदर ना किए अपनों की चाह में,
चाह भी ना मिली मंजिल भी गयी,
यू ही गुजरता गया ये साल l
-ankita sthakur