दोहा गीत - रात
ओढ़ रेशमी ओढ़नी, ज्यों दुल्हन हो रात।
नजरों से यामा करे, चाँद पिया से बात।।
निशा-नवेली झाँककर,देखे वसुधा धाम।
थके हुए पंछी करें, अब देखो विश्राम।।
हर प्राणी को मिल रहा, यहाँ प्रेम सौगात-
नजरों से यामा करे, चाँद पिया से बात।।
नीले इस आकाश के,तले पले अनुराग ।
प्रस्तर-कांटों मध्य भी,खिले धरा के भाग।।
जुगल-जोड़ी आकाश से,करे नेह बरसात-
नजरों से यामा करे, चाँद पिया से बात।।
बातों-बातों में हुए,रात के चार प्रहर।
धरती पर हलचल हुई,जाग उठा हर घर।।
चलो पिया चंदा चलें,होगा तभी प्रभात-
नजरों से यामा करे, चाँद पिया से बात।।
दिनकर लेकर रश्मियाँ, हरे पाप संताप।
मनुज समेटो धूप तुम ,कहते भानू आप।।
रुककर ये सब देखती,अगर न होती प्रात-
नजरों से यामा करे, चाँद पिया से बात।।
सुनीता बिश्नोलिया
जयपुर