ग़म का साथी........................
आंसू छुपाना हो या हंसी में खुद को संभालना हो,
ना हो कोई बात मगर फिर भी कुछ कहना हो,
जोश मे जिसका सहारा लेते है,
बेहोशी में जिसके गले पड़ते है,
मैं ही तो हूँ वो कंधा जिसे लोग,
यूँ ही तलाश करते है......................................
आगोश में जिसकी शिकायते बयान होती है,
गिले - शिकवों की दास्तान शुरू होती है,
बीतें सालों में बिना चले ही पहुँच जाते है,
नए सपनों की शुरूआत भी यहीं से होती है,
मैं कंधा लोगों से ज़्यादा पूछा जाता हूँ,
मैं हूँ ही इस काबिल कि हर वक्त याद किया जाता हूँ.......................
ज़िन्दगी जब ठोकर मारती है,
किस्मत जब आज़माती है,
तब इसके होने का और भी ज़्यादा एहसास होता है,
जब ड़राती है काली रात हमें,
तब अपना ही कंधा साथ होता है,
कभी ते गहरी नींद हमें वहाँ ले जाती है,
जहाँ खड़े होते है खुदा बहे फैलाएं,
और हमारी नज़रें आंसू भी जमा देती है..........................
स्वरचित
राशी शर्मा