मैं साकी मेरा गुनाह.............................
अमीरों के हाथ में दिखता हूँ, गरीबों को बदनाम करता हूँ,
समाज के लायक नहीं मैं, हर बार यही सुनता हूँ,
ऐसा क्या करूँ कि अपना गुनाह मुझे समझ में आ जाए,
कुछ ना कर के भी क्यों मेरा नाम इस कदर उछाला जाएं,
घोर संकट है कि क्या किया जाएं,
मुझ नशे पर कैसे पाबंदी लगाई जाएं..........................
किसी को शौक है मेरा,
कोई ग़म भुलाने के लिए पीता है,
कोई चाहता नहीं है होश में आना,
इसलिए मेरा सेवन करता हैं,
लत है मेरी लोगों को तो मैं क्या करूँ,
फैल जाऊँ या बिखर जाऊँ कैसे खुद को आबाद करूँ..........................
ना मैं खुद की जनक हूँ,
ना ही मैनें खुद को नशीला बनाया है,
ऐ तो इंसानों ने ही मुझे अपना गुलाम बनाया है,
पीता कोई और है और गुनहगार मुझे समझा जाता है,
हूँ तो मैं महंगा लेकिन मुझे पीने वाला सस्ता नज़र आता है.........................
स्वरचित
राशी शर्मा