उम्मीद
उम्मीद का अंकुर बंद तालों में भी खिलता,
खोल तो ह्रदय के द्वार,यहाँ प्यार बेपनाह मिलता है।
क्यों सड़ी-गली परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़े हो,
तोड़ के आगे आओ, क्यों बेवजह इन्हें पकड़े हो।
मन में दबी इच्छाएँ, बंद तालों में दिख जाती हैं,
पम्पराएँ सारी नहीं , बस कुछ ही पीछे ले जाती हैं।
कब तक यों करोगे गुलामी , किसी और के दर पे
आ के खोल दे ये ताला , जो लगा है ते घर पे ।
उम्मीद के दामन को , ना छोड़, तू प्यारे
सफलताएँ हैं बुलाती , तुझे बांहें पसारे।
खुश हो कि तेरे मन में उगा ,तुलसी का बूटा,
अब भूल भी उस दिन को , जब दिल तेरा टूटा।
अंकुर को उठा हाथ में , और माटी में लगा दे,
तू तोड़ के हर ताले को 'पुष्प ' आशा के खिला दे।
विश्वास से भर कर उड़ ,ऊँचा रे...! पंछी
हर हद से गुजर जा, ओ!हारे हुए पंछी..
मंजिल को ऐ पंछी तू, कदमों में झुका ले,
हुँक्कार के प्रहार से ,सब तोड़ दे ताले ..
बंधन के ओ! पंछी ना पी तू विष के पियाले,
हर तोड़ के ताला ,आ... मुक्ति को गले से लगा ले।
सुनीता बिश्नोलिया