विषय - आंचल
दिनांक -05/11/2022
जन्म लिया जब इस धरती पर,
मां का आंचल सदा से ही पाया।
उनके ही मातृत्व का अंश हूं मैं,
बनकर रहता हूं उनका हमसाया।।
बाल्यावस्था में नटखट बातें करके,
सभी के दिल को रिझाते थे।
कोई अगर झूठा क्रोध दिखाए,
तो मां के आंचल में छुप जाते थे।।
छोटी छोटी सी शरारतों से,
सबको आकर्षित कर जाते थे।
भोलेपन और मासूम चेहरे से,
मां के गले फिर लग जाते थे।।
छोटी मोटी गलतियों से बचाने के लिए,
मां हमारी ढाल बन जाती थी।
पूरे परिवार के लोगों के सामने,
अपने आंचल को शस्त्र बनाती थी।।
सुख दुख कितना भी बना रहे जीवन में,
मां के साथ सदा ही सांझा करिए।
चरण छू उनके शुभाशीष लेकर,
लक्ष्य पाने पर अपना कदम रखिए।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री