तेरी इनायतों का अजब रंग ढंग था
तेरे हुजूर पा-ए-कनाअत मे लंग था
सहरा को रौंदने की हवस पा-ब-गिल है अब
यॅू था कभी कि दामन-ए-आफाक तंग था
दामन को तेरे थाम के राहत बडी मिली
अब तक मैं अपने आप से मयरुफ-ए-जंग था
हंगाम- ए-याद दिल मे न आहट न दस्तकें
शोरिश-कदे में रात खमोशी का रंग था
तू आया लौट आया है गुजरे दिनों का नूर
चेहरों पे अपने वर्ना तो बरसों का जंग था
रक्स-ए-जुनॅू मे भी था तरीक-ए-हुनर का ढग
सुफी-ए-बा-सफा था कोई या मलंग था
क्या आसमॅा उठाते मोहब्बत में जब कि दिल
तार-ए-निगह में उलझी हुई इक पतंग था
❤️