संवेदन की गली में
मिल रहे हैं मित्र कितने
साँझ गहराई हुई हर
बात किस किस को सुनाए्ँ
ऐसे कुछ प्रश्नों की ढेरी
सामने आकर खड़ी है
जैसे सामने खड़ी हो
जाएँ सारी कल्पनाएँ
कल्पना सुर में सजा लें
मुस्कुरा दीपक जला लें
सबमें भर दे स्नेह को हम
नेह हर मन में
सजा लें ------!!
डॉ प्रणव भारती