मैं उड़ना चाहती हूँ............................
आज़ाद ख्याल की मालिक हूँ,
मैं समझदार हूँ, मैं अल्हड़ हूँ,
आखों में शर्म और मुँह में ज़ुबान है मेरे,
एक हूँ मैं कई अंदाज़ है मेरे..........................
ना सलाखें, ना पहरेदार चाहिए,
ना ही नसीहतों का बाज़ार चाहिए,
ज़रा कदम तो रखने दो बाहर,
फिर दुनिया जानेगी,
हमें तो लोगों का केवल विश्वास चाहिए............................
जकड़ी हूँ मैं भीतर से, मुझे बाहर से तो आज़ाद रहने दो,
भ्रम ना रखों मेरे बारे में, मुझे अपनी बात तो कहने दो,
चल सकती हूँ मैं पानी में, उड़ सकती हूँ मैं आकाश में,
दुनिया कमज़ोर समझती है मुझको,
उन्हें क्या मालूम मैं जी सकती हूँ हर हाल में.....................
स्वरचित
राशी शर्मा