नशा खामखां का ......................
हर कोई मेरा आदि नहीं,
मैं हर किसी के हाथ में सजता भी नहीं,
मुझे गश्त करने वाले तो कोई और ही है,
सच मानों मैं हर किसी को बिगाड़ता भी नहीं......................
हाथों में जला, लबों से मुझे लगाते है, धीमा ज़हर भीतर ले,
धुऐं का छल्ला हवा में उड़ाते है,
बनाने वाले ने भी क्या खूब मुझे बनाया है,
तनाव मुक्त करने के नाम पर,
ना जाने कितनों से मुझे छुपावाया है..............................
नशे का फर्क हर किसी के लिए जुदा - जुदा है,
कोई डूबा है काम में तो कोई कामयाबी के पीछ दौड़ रहा है,
किसी को इक्मिनान की हवा लग गई,
तो किसी से बैचेनी संभाली नहीं गई,
और मेरी लत लग गई................................
सुना है मेरी हुड़क घर भी नीलाम करवाती है,
सोचने की समझ तो मेरी सोच ही खा जाती है,
मैं बुरी हूँ ऐ सब कहते है,
मगर जिसने चखा मुझे उस पर लोग तरस खाते है,
मैनें कब कहां कि तुम मुझे इजात करो,
मैं तो हूँ ही बर्बाद सबकी नज़रों में,
कम से कम मुझसे कमाने वालों पर भी तो कोई,
इल्ज़ाम तो दो................................
स्वरचित
राशी शर्मा