जानी स्वार्थ की भूमी ,
देखी ईर्ष्या की फसल
तोड़ी लोभ से रोटी ,
एक पल जाना वैराग ,
हाँ वैराग ही होगा |
एक क्षण जाना प्रेम ,
हाँ वह प्रेम ही होगा |
बारी -बारी से परिचित
करवा रहे हो |
जाने मुझे क्या बना रहे हो,
हाँ ! कुछ बना देना ,
इससे पहले ,
मेरा मुझसे परिचय
करवा देना |
तभी तो जानूँ मुझे क्या
चाहिए , आखिर !
क्या दुःख है मुझे
क्यों हृदय मे पीड़ा उठती,
कभी शान्त होती है|
क्या यह अन्दर का लोभ
और कामना है?
है जो बिना अस्तिव
या सामने अस्तित्व ,
क्या पाना है और क्यों?
नही संतुष्ट हूँ इस जीवन से,
नही जानती क्यों?
जानूँ भी तो कैसे?
जानने के लिए भी तो
जानना पड़ता है |