कुछ इस अदा से नखरे दिखाती है वो
हर कभी छोटी बच्ची बन जाती है वो
संभाले नहीं संभलते नखरे उसके तब
जब तरह-तरह के स्वांग दिखाती है वो
कभी बोलती है यूँ थोड़ा-सा तुतलाकर
कभी मुँह फुला चुप-सी हो जाती है वो
कभी हँसती है होंठ और आँखें मीच कर कभी पूरे दाँत फाड़ खिलखिलाती है वो
कभी उँगलियों से गुदगुदी कर हँसाती है कभी अजीब-अजीब चेहरे बनाती है वो
कभी बस यूँ बे-धड़क हो आँख मारती है कभी शर्म से नज़रें भी नहीं मिलती है वो
करती है ये सब और मुझे बड़ा सताती है वो कुछ यूँ अपना प्यार और हक जताती है वो
-Akash Gupta