वो जो विश्राम दें................................
दीवारें जब घोंटती है गला तब मुझे तुम याद आते हो,
जब घेर लेती है मायूसी तब तुम मुझे पास बुलाते हो,
थकान जब अपना ज़ोर आज़माती है उस वक्त तुम मुझे सुस्ताने का मौका देते हो,
सांस जब बैगानी लगती है खुद के घर की,
उस समय तुम मुझे अपना सिरहाना देते हो....................................
तुम पर बैठकर अपनी ही बात करते है,
देखते है चारों और हम जब थक जाती है आँखें,
तब उसे बंद कर तुम पर ही विश्राम करते है,
भूल जाते है हम कि हमें घर भी जाना है,
प्यार आता है तुम पर जब तुम कहते हो,
अभी जाओं तुम कल मिलेगें वैसे भी मुझे कहां कहीं जाना है......................................
सड़क के किनारे लगे तुम खुद को कम मत समझना,
राहत हो तुम सबकी खुद को बेवजह ना समझना,
माना की गर्मी में तुम तपती हो,
पर ऐ ना भूलों की सर्दी में तुम कितनों को धूप सिकवाती हो,
बारिश में तो तुम्हारी अदा कुछ और ही होती है,
धुल जाती हो तुम जब भी तेज़ वर्षा होती है,
पतझड़ ने तुम्हें और भी ज़्यादा निखारा है,
कितना अच्छा लगता है वो द्रश्य जहां तुम पर गिरता कुदरत,
का सूखा पत्ता है.................................
स्वरचित
राशी शर्मा