अरमानों की ज़िद...............................
दिखाई नहीं देता पर घेर लेता है,
बंधे हुए को और जकड़ लेता है,
ज़मीन से पहले इसमें दफन होते है,
हम ना जाने कितनें अरमानों का गला घोटें जीते है....................................
कभी पूरी नहीं होती,
तो कभी पूरी हो कर भी खुशी नहीं होती,
थकान कहो या कहो बोरियत हमारी,
तबाही लाती है अरमान,
किसी भी हाल में खुश रहने नहीं देती............................
अचंभित इंसान को और भी हैरान करती है,
खाक से उठाकर आसमान पर बैठाने की बात करती है,
बेवकूफी का आलम इंसान को यकीन दिला देता है,
अरमान मन ही मन मुस्कुराता है,
और इंसान अंधा बन फिर उसकी हां में हां मिलाता है............................