बेताब...........................
ज़िन्दगी बेताब है गुज़र जाने को,
सपना बेताब है पूरा हो जाने को,
इंसान भाग रहा है कि हाथ से कुछ छूट ना जाए,
कस के थामें बैठा है सांसों को कहीं,
उससे पूछे बगैर ही पूरी हो ना जाएं.............................
अद्भुत द्रश्य है बन गया है आँखों के लिए,
बेसब्र हर मंज़र और भय से भरे हुए,
खुदा भी सब कुछ चुपचाप देख रहा है,
इंसानी सब्र का पैमाना कैसे लबरेज़ हो रहा है.............................
उससे मुलाकात की सोच कर रोंगटे खड़े हो रहे है,
उसके सवाल को सोच हम परेशान हो रहे है,
ज़मीनी लोग सोचते है वो हमसे मिलने की राह देख रहा है,
उन्हें क्या मालूम वो हमारी बेताबी को देख,
हमसे और दूर हो रहा है..................................
स्वरचित
राशी शर्मा