मैं खूशबू अलग तरह की..................................
माना की फूलों में बसती हूँ मैं,
हरियाली के बीच सजती हूँ मैं,
पूरे विश्व में मेरा ड़ंका है,
लेकिन क्या मालूम है,
तुम्हें इंसानी व्यक्तित्व में भी मेरा ठिकाना है.....................................
मैं खूशबू हूँ अच्छाई की, मैं मूर्ति हूँ सच्चाई की,
छल से दूर मैं आसान सी चीज़ हूँ,
पहेली नहीं मैं इंसानों में बसती सरलता की महक हूँ,
यूँ ही थोड़ी में जाना जाता हूँ,
खासियत तो देखों ईमानदारी की मैं दूर से ही पहचाना जाता हूँ.................................
आवाज़ में ठहराव और वाणी में नज़ाकात भी एक खूशबू है,
तभी तो बिन देखें ही पागल हो जाती हर शख्सियत है,
खामोशी भी एक अलग किस्म का लिबास ओढ़े बैठी है,
ऐ भी चुपचाप ही तारीफें बटोर रही है...............................
ना इत्र की ज़रूरत है, ना चाहिए फूल महकने के लिए,
सादगी से जी रहे है हम, बिना किसी को पता चलें,
हुनर की खूशबू ने कितनों को हमकाया है,
आते - जाते है लोग यहाँ,
ज़मीन पर तो केवल अच्छे लोगों का नाम बचा है...............................
स्वरचित
राशी शर्मा