आज़माइश है कि...................................
लड़ -लड़ कर थक गए, थक - थक कर भी थक गए,
दिमाग को भी जंग लग गया,
क्या चाहती है ज़िन्दगी हमसे ऐ हमें पता ना चला,
ठोकर खा कर भी चले हम, दर्द सह कर भी आगे बढ़े हम,
उसे देख कर भी अंदाज़ा ना हुआ,
हम टूट गए फिर भी उसे यकिन ना हुआ.............................
कभी वक्त आज़माता है, तो कभी हमें आँखें दिखाता है,
किस्मत कहो या मुकद्दर वो भी कहां हमारा साथ निभाता है,
दुआ का भी पता नहीं चलता पहुँचती है या नहीं,
दर - दर सिर झुका लिया फिर भी वो राज़ी हुआ नहीं................................
जागते हो तो आज़माइश सोने नहीं देती,
सपनों में भी घुस जाती है ऐ खत्म होने का नाम नहीं लेती,
कुछ भी कर लो मुस्कुराती नहीं ऐ,
हंसने पर भी उसके कर लगता है,
तभी तो गंभीर रहती है ऐ,
ऐ आज़माइश कितना आज़माती है तू हमें....................................
स्वरचित
राशी शर्मा