“दोस्तों के लिये”
“शायद फिर से वही सुकून मिल जाए,
जीवन के वो हँसीं पल फिर मिल जाए;
चल फिरसे बैठे वो क्लास की आख़िरी बेंच पे,
शायद फिर से वो पुराने दोस्त मिल जाएँ।
अपने लफ़्ज़ों से चुकाया है किराया इसका,
दिलों के दरमियाँ यूँ मुफ़्त में नहीं रहती :
साल-दर-साल हम उम्र न देते जो इसको,
तो दोस्तों में युं मोहब्बत जवाँ नहीं रहती ॥”