श्रीमद्भागवत गीता
अध्याय ४ : श्लोक ७
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”
अर्थ:इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं “जब जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, विनाश का कार्य होता है और अधर्म आगे बढ़ता है, तब-तब मैं इस पृथ्वी पर आता हूँ और इस पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ।मैं अवतार लेता हूं। मैं प्रकट होता हूं। जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं। जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं।"
श्लोक ८
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।”
अर्थ:सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
श्रीमद्भागवत गीता का यह श्लोक जीवन के सार और सत्य को बताता है। निराशा के घने बादलों के बीच ज्ञान की एक रोशनी की तरह है यह श्लोक। यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के प्रमुख श्लोकों में से एक है। यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय ४ का श्लोक ७ और ८ है।श्रीमद्भागवत गीता का यह एक लोकप्रिय श्लोक है । महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश उस समय दिया था जब वे अपने- पराए के भेद में उलझ गए थे। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरूक्षेत्र में यह ज्ञान कराया।
🌹जन्माष्टमी पर्व पर आपको मेरी ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।🌹