पंछी, पिंजरा और हम.........................
खुद को आज़ाद समझ एक पिंजरा ले आए हम,
सोच कर की कैदी इसमें पंछी होंगे,
जब देखा उसकी बैचेनी को,
तो एहसास हुआ कि आज़ाद तो हम भी नहीं है.................
वो खौफ का कैदी बना रहा,
हम डूब गए अंधेरों में,
वो उड़ा नहीं गिरने के ख़याल से,
हम फंसे रहे अपने ही मायाजाल में........................
कभी सपनों में कैद, कभी अपनों में खोए,
दूर जाते ख्याल, हम कहीं और खोए,
गुमशुदा ज़िन्दगी में आज़ाद कोई नहीं,
जिंदा है कुछ बन जाने की चाहत में,
जीता यहाँ कोई नहीं...........................
स्वरचित
राशी शर्मा