यूँ ही चलते है......................
क्या ज़रूरत है कुछ कहने या बताने की,
सबको अपने गुम होने की वजह बताने की,
चलों हम तुम कहीं चलते है, आसपास नहीं कहीं दूर चलते है,
चलों यूँ ही चलते है......................
देखें तो ज़रा कहाँ ये सफर खत्म होता है,
पता तो चले कहाँ राह का अंत होता है,
छोड़ दुनिया को पीछे किसी नए शहर को चलते है,
हम - तुम किसी लम्बे सफर को चलते है,
चलों यूँ ही चलते है..................................
यहाँ से दूर वो वादियां हमें बुला रही है,
मैं भी अकेली हूँ ये कह कर नज़दीक बुला रही है,
चलों मुझे तुमसे और खुद से मिलना है,
साफ आसमान में तारे गिनना है और तुमसे बहुत कुछ कहना है,
सारे शिकवें मिट जाएंगें,
जब हम दोनों यूँ ही कहीं दूर निकल जाएंगें......................
स्वरचित
राशी शर्मा