दौर दौड़ रहा है......................
हर चीज़ को पंख लग गए है,
इंसान छोड़ो वक्त को भी पर लग गए है,
जब चाहा की वो धीरे से गुज़रे तो,
वो और भी तेज़ हो गया,
और जब विनती की रफ्तार बढ़ाने की,
वो कछुए की चाल चलने लगा...........................
दौर को भी हमारा साथ रास नहीं आ रहा,
दौड़ लगा रहा है अपनी ही धुन पर,
उसे हमारा ख्याल नहीं आ रहा,
वो भी ज़मीनी लोगों की बातों से इत्तेफाक रखता है,
ना परवाह वो करता है और ना अब परवाह मैं करता हूँ.......................
मेरी सुध कोई लेता नहीं और ना ही मुझे कोई पूछता है,
ऐ दौर ऐसा ही है, कह कर मुझे बदनाम कर रखा है,
उन्हें क्या पता वो ऐसे है इसलिए मैं वैसा हूँ,
दया है इतनी मुझ पर कि ना वो बदलते है और ना मैं बदलता हूँ......................
स्वरचित
राशी शर्मा