हिमालय................
पर्वत, पहाड़, चोटी ये सभी मेरे ही नाम है,
सुंदर, आकर्षक और गहरी ये मेरी पहचान है,
बहता है झरना मुझसे गुज़र के,
बर्फ भी जमती है मेरी चोटियों पे,
सदियों से मैनें हर दिल पर राज किया है,
तभी तो लोगों ने गर्मी का दिन मेरे नाम किया है...................
बादलों को छूता मैं, कोहरे से ढ़का रहता हूँ,
बारिश कब होगी पहले से भाप लेता हूँ,
कदम जमाए रहता हूँ, मैं इस धरती से,
कहीं खिसक ना जाएं ज़मीन,
बिना मेरी इजाज़त के.......................
बड़े शौक से लोगों को अपने सिर पर चढ़ाता हूँ,
मिलाता हूँ वादियों से और हवा से मित्रता कराता हूँ,
हरियाली की सैर करा, उन्हें अपने करीब लाता हूँ,
कैमरा भी फिका पड़ जाता है, मैं ऐसी तरकीब लगाता हूँ,
लोग वाह - वाह कहते थकते नहीं मुझसे मिलने के बाद,
मैं भी उन्हें भूलता नहीं एक बार मिलने के बाद........................
मेरी शांति को कमज़ोरी ना समझना,
मुझ पर सवार हो तो इसे मेरी मजबूरी ना समझना,
लगाव है तुम सब से इसलिए कुछ कहता नहीं,
जिस दिन अपनी पर आ गया,
समझना उस दिन इंसान मेरा नहीं और मैं उसका नहीं...................
लेखक
राशी शर्मा