Hindi Quote in Poem by rashi sharma

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मोह - माया......................





जोड़ता है, जकड़ता है, रिहा भी करता है, कहता है आज़ाद हो तुम,



फिर बिना हिसार के कैद कर लेता है, तड़पाता है पर मरने नहीं देता,



कहता है भाड़ में जाओं सब, फिर जाने भी नहीं देता,



इस कदर खुद से बांध रखा है, अज़ियत भी देता है,



लेकिन कहराने नहीं देता.....................







लत ऐसी है कि छूटती नहीं, कम पैसे में ज़िन्दगी गुज़रती नहीं,



हाय तौबा मचा रखी है कमाने वालों ने कमबख्त ये इच्छाएं है जो खत्म होती नहीं,



कहाँ मिलेगा वो शख्स जो खुद में पूरा है, जलता नहीं औरों से, ना जाने कौन से मंत्र फूंका है,



यहाँ तो औरों की तरक्की देख जान निकल जाती है, फिर खुद को बड़ा बनाने की होड़ में,



निकलती जान वापस आ जाती है..............







पंच तत्व से बना शरीर मोह - माया का गुलाम बन गया,



बड़े हाथ - पैर मारे इसने, पर ये दल - दल में धंसता चला गया,



ना खुद के बारे में सोच पाता है, ना खुदा को याद कर पाता है,



अपनों के बारे में सोचता है और माया का अंबार लगाता चला जाता है,



कोशिश तो पूरी रहती है कि कोई कमी ना रहें, लेकिन वो मोह - माया ही कैसी,



जो और अधिक की आरज़ू ना करें.....................







लेखक

राशी शर्मा

Hindi Poem by rashi sharma : 111823916
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