मेरो मन अनंत कहाँ सुख पावे
जैसे उड़ जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवे |
सूरदास प्रभु निजवाणी बार - बार दोहरावैं |
🙏🌹♥️
दौड़ जहाँ की ठौर तुम्हारा , मै मीन तुझमे तुम सागर पसारा | संहार कर दो जो फन उठाये बैठा हुआ गर्व धूनी रमाया | अहं छुपके बैठा कभी सीना फुलाये ये नैन प्यासे पीड़ा समाये | कभी खीचते है मुझको है किनारे, तू बीच बैठी मुझे न पुकारे | पकड़ हाथ मेरा, चल साथ मेरे मुझसे तो अब चला भी न जाये | है करनी जो करती है, मेरा करम है , पाले हुए मन ने लाखो भरम है | फँसी जाल में खुद कि माया फसाये है भेद पीड़ा समझ ही न आये |
करना सुखी उनको जिसने भी ठुकराया , हुई दूर तुझसे नजदीक लाया | न भटके मेरा ध्यान अब तुझमे समाये |
हर क्षण स्वाँस सिमरे , तेरा गुण ही गाये |