छोटी सी ज़िन्दगी.................
बड़े - बड़े सपनों का बोझ छोटी सी ज़िन्दगी उठा रही है,
कहराती है, थक जाती है फिर भी मुस्कुरा रही है,
अपनी उदासी को मंद मुस्कान के पीछे छुपा रखा है,
मिलती है ऐसे जैसे बदलते वक्त का असर उस पर नही पड़ता है..............
आज नहीं तो कल पूछेगी,
ज़िन्दगी कभी ना कभी तो अपने होने की वजह पूछेगी,
सब भाग रहे है ऐसे जैसे कि वे तन्हा है,
छूट रही हो गाड़ी जिस पर उन्हें चढ़ना है,
बेखबर है कि छोटी सी ज़िन्दगी अब और सिकुड़ गई है,
उनके भागमभाग में वह अपने अंत तक पहुँच गई है.....................
इच्छाओं के बाज़ार में हर चीज़ महंगी है,
जिसे पाने की जुगत में लम्बी कतार लगी है,
लम्बा वक्त गुज़र गया उसे पाने की चाहत में,
इंसान खड़ा का खड़ा रह गया, उसकी आरज़ू लिए,
देखों तो ज़रा कैसे वक्त पलटता है,
खुद की ज़िन्दगी कौड़ी की हो गई है,
ज़मीनी लोगों के लिए.
लेखक
राशि शर्मा