*दोहा सृजन शब्द--*
*आरंभ, प्रारब्ध, आदि, अंत, मध्य*
1 आरंभ
करें कार्य आरंभ शुभ, लेकर प्रभु का नाम।
मिले सफलता आपको, पूरण होते काम।।
2 प्रारब्ध
मिलता है सबको वही, लिखता प्रभु प्रारब्ध।
अधिक न इससे पा सके,कितना हो उपलब्ध।।
3 आदि
आदि शक्ति दुर्गा बनीं, जग की तारण हार।
शत्रुदलन कलिमल हरण, रक्षक पालनहार।।
4 अंत
अंत भला तो सब भला, कहते गुणी सुजान।
कर्म करें नित नेक सब, मदद करें भगवान।।
5 मध्य
मध्य रात्रि शारद-निशा, खिला चाँद आकाश।
तारागण झिलमिल करें, बिखरा गए प्रकाश।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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