विषय -सावन जा रहा है
दिनांक -01/08/2022
आओ प्रिय इस सावन में,
सावन बीता देखो जा रहा है।
हरियाली भरे इस मौसम में,
सूखा सा ये मन जा रहा है।।
सावन के इस महीने में,
तुम अपने पीहर चली गई।
मैं बैठा हूं प्यासा सा,
पर तुम मेरे दिल से नहीं गई।।
पिछले सावन की छवि तुम्हारी,
मेरी आंखों में बसी हुई है।
हरी साड़ी,हरी चूड़ियां और हरी बिंदी,
मेरी आंखों से नहीं गई है।।
तुम्हारा वह तो सावनी रूप,
मन को हर्षाने वाला था।
जो भी देखता तुम्हें एक नजर,
वही अपने दिल में बसाने वाला था।।
इस सावन तुम मुझे छोड़कर,
अपने पीहर क्यों चली गई।
मैं प्यासा हूं इस सावन में,
मेरे दिल की व्यथा तुम क्यों नहीं समझी।।
अब आ जाओ तुम मेरी प्रिय,
देखो सावन अब जा रहा है।
तुम्हारी यादें मुझे सता रही है,
और तुमको बड़ा ही मजा आ रहा है।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री