वो गलियां.............
जब चले जाओगे तो वो गलियां तुम्हें याद करेंगी,
तुम्हारे हर कदम और ठोकर से शिकायत करेंगी,
पूछेंगी उनसे क्या ज़रूरत थी इतना कठोर होने की,
उससे हद से ज़्यादा दर्द देने की,
देखों वो चला गया इस दुनिया को छोड़ कर,
हस रह गय उसकी यादें बटोर कर.............
आज भी गूंजती है उसकी आवाज़े मेरे ज़ेहन में,
उसकी हंसी की गवाह पूरी कायनात होती थी,
रोता था ऐसे कि किसी को भनक भी ना पड़ी,
पर ये कैसे मुमकिन था कि उसके हाल का मुझे पता ना चलें,
मैं भी सिरहाने की दीवार से चिपका रहता था,
जब तक उसके चुप होने का पता ना चलें.............
सुनसान कर गया वो शहर, वो गलियां मेरी,
लम्हा भी ना रूका इंतज़ार में मेरी,
बड़ी जल्दी थी उसको हमें छोड़ खुदा का हो जाने की,
अलविदा बगैर सुने ही चला गया मेरी.....................
काश ये कह पाते की इंसान ही नहीं हम भी उस से जुड़ चुके है,
उसकी हर हरकत से मुतासिर हो चुके है,
गया था जब वो शहर छोड़ कर तो,
हमनें भी उन गलियों का रूख ना किया,
रोते रहे हल्की बारिश में किसी से ज़िक्र ना किया...............
इस बार वो मेरी दुनिया से ही चला गया,
खुद खामोश ना हुआ बल्की मुझे भी फरामोश कर गया,
इस बार आँसू नहीं बहे, दिल ही डूब गया मेरा,
खुदाहाफिज़ मेरे दोस्त, आज मैं फिर से अकेला हो गया.................