हूँ अभिन्न तुमसे बताया , दिखाया क्या ?
तुम जो जानते हो अन्तर की , हूँ याद ?
बिसराया क्या ? लिये स्थान थी हृदय मे ,
अब स्थान क्या नही ?
मै आ न सकी थी जो ,
तुमने बुलाया था कभी ?
अन्तर में बैठ कर रचते हो कल्पना ,
क्या है कल्पना कोरी हकीकत नही ?
जो मुझमे हो विग्रह तीसरा समाता नही ,
यह मै ही , मेरा ही है क्या , तुम्हारा नही ?