#hindi poetry
ना रूप ना कोई स्वरूप,
लेकिन चांद और सितारों सा, है ये प्यारा ये महबूब जरूर
एक ख्वाब तुम, जिसकी कोई खुशबू नहीं
बस उसको पाने का है फितूर
टूटते हुए तारे से मांगा है ,हर रात को ये जरूर
एक ख्वाब जो दिल में कब से बसा रखा है
कब हो जाए कबूल
लुकाछिपी जो खेल रहा है, अब और ना उड़ाए आंखों में धूल
भूल गए हैं खुद को जिसको पाने की चाहत में,
अब मिल जाए किसी रूप
Deepti