है कुछ भावों को गहना, सरल कहां?
अंतर्मन को पढ़ना इतना, सरल कहां?
संसारी नदिया में उतरना, सरल कहां?
डूबती नैय्या पे सम्भलना, सरल कहां?
आसान है नहीं यहां, कुछ कर जाना,
कर पार बाधाओं को,अपने घर जाना।।
जीने की कलाओं को जानते हैं जो....
हैं परिणाम दो ही मात्र रखते याद वो।
तर जाना-मर जाना, इक मरके तर जाना।।
#दर्पणकासच
#कर्मयुद्ध
#सच्चाईजिंदगीकी
#योरकोट_दीदी
#योरकोटबाबा
#सनातनी_जितेंद्र मन