“दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए~गम गुजार के
वीरॅां है मय-कदा खुम-ओ-सागर उदास है
तुम क्या गए कि रुठ गए दिन बहार के
इक फुर्सत-ए~गुनाह मिली वो वो भी चार दिन
देखे है हम ने हौसले पर्वरदिगार के
दुनियाने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिल-फरेब है गम रोजगार के
भुले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज ‘फैज’
मत पूछ वलवले दिल-ए-ना कर्दा-कार के “
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