जैसे थी आज भी वैसी ही हूँ ,
क्या तुम्हे पता नही |
मैने पाया ही क्या जो खो
दूँगी | यदि मेरे हक का है तो
कोई छीन लेगा क्या मुझसे?
तुम्हारी शरण मे आकर कभी ,
किसी से छीनने की जो भावना न की |
नही चाहिए किसी के हक का एक कतरा भी मुझे
बता अब क्या एक कण भी मेरे नसीब मे नही |
मिले या न मिले मगर न रास्ते बदलूँगी , खुशी न दे पाई
तो नाहक खुशिया किसी की न छीनूँगी | दो गुजरा दो
और गुजर जायेगा दिन | कही तो बसर होगी ,कहीं तो ठहराव आयेगा |😭