तुमने कहा जब चलना हो बता दियो |
हाँ ! चलना है मुझे अब ! समान लदा है
बहुत मुझपर मगर ! जानती हूँ तुम भार
उठा लोगे | हाँ ! सामान मेरे ऊपर है मै
सामान मे नही |
खुद को फिर भी देख पाती
नही , देखते हो अब भी मुझे तो खुद ही
देख लो | हो तुम मुझमे अब भी या नही |
तुममे मै हूँ इस बात को भी तुम ही जानते हो,
मै जान सकूँ वह दृष्टि अभी खोली नही |
संशय के कंकणो की बौछार केवल दुःख
पहुँचाती है मगर! तुम्हारे प्रेम को तिल भर भी
न भेद पाती है | भेद तो मै भी नही पाई हूँ
आखिर क्यों हैं यह रह -रह कर उठती
अनवरत पीड़ा जिसपर चलता किसी का
वश नही |