सजल
समांत- अना
पदांत- है
मात्रा भार- 21
माना चारों ओर कोहरा घना है।
सूरज का ऊगना भी कहाँ मना है ।।
जीवन भर तिमिर का साथ ही निभाया ,
कहते हो दीपक को अब सरगना है।
बादलों से बरसात क्यों होती नहीं,
दोस्ती हवाओं से, निरा बचपना है।
पहले फिजाओं में जहर घोलते हो,
फिर खुद ही कर देते हो भर्त्सना है।
उपदेश दे रहे खुद, जो जमाने को,
उसी तवे पर फिर रोटी सेंकना है।
मुखौटे पहनकर घूम रहे जो अभी,
मिल बैठकर अभी, उन्हें तौलना है।
रक्त रंजित किया वातायन है सभी,
कैसे होगा विहान फिर सोचना है।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज