किस बात का है तुझे गुमान
तेरे बस में क्या रहा है इंसान
ना तू रोक सकेगा आंधी तूफ़ान
ना ही रुकेगा रोके सागर का ऊफान
चाहे जलजला हो या हो सैलाब
तू न लगा सकेगा इनका हिसाब
ज्वालामुखी जब चाहे फेंकेगा अंगार
कभी सूखा कभी वर्षा से तड़पेगा संसार
कभी बिजली गिरेगी कभी बादल फटेगा
तू चाह कर भी कुछ न कर सकेगा
न तू कुछ यहाँ ले कर है आया
न कुछ यहाँ से ले कर जाएगा
तू बस अदना सा एक इंसान
फिर किस बात का है गुमान