हूँ जो दूर तुमसे जीवन है ही कहाँ ,
साँसो का बोझ उठाये फिर रही हूँ |
मृत्यु मे सुरीली धुन थी वह भी अब
सुनाई नही देती मगर ! जिन्दगी मे
जिन्दगी अब दिखाई नही देती |
जीवन की नीरसता ,निराशा मृत्यु
से आनन्द की आस जो लिए थी ,
अब उस आस मे भी आनन्द दिखाई
नही देता | तुम्हारे अतिरिक्त कुछ दिखाई
नही देता , मगर! तुम भी दिखाई नही देते |