इठलाती लहरों पर सूरज की रश्मियां,
रातों में झिलमिल चांद की सोखियां।
सावन व भादो के झूलों पर झूलती,
चंचल नदियों की चपल धवल मस्तियां।
मदमाती गीत गाये बिना थके हर पहर,
कितना मनोरम जल की कलाबाजियां।
*
रातों की स्याही जब हो जाती गहरी,
सुनसान नदी तट हलचल जब ठहरी,
निरव आकाश में जब चीखें टिटहरी,
अगल बगल गावों में सतर्क बूढे प्रहरी,
बाढ़ के डर से डरी सहमी फिजाएं।
बार बार उजड़ने के अंदेशे सताएं।
पकी हुई फसलों की झूमती बालियां,
डूब ना जाएं कहीं कृषकों की आशाएं।
*
मूसलाधार वर्षा संग तूफानी हवाएं,
नदी के कटाव से दरकती फिजाएं,
खौफनाक विपदा में बैल बकरी,गायें,
तरमिस की काट से भयभीत दिशाएं।
*
ऐसा समय हर साल सबको सताएं,
तीन माह दहसत के कैसे हम बिताएं।
---
इठलाती लहरों पर सूरज की रश्मियां,
रातों में झिलमिल चांद की सोखियां।
सावन व भादो के झूलों पर झूलती,
चंचल नदियों की चपल धवल मस्तियां।
मदमाती गीत गाये बिना थके हर पहर,
कितना मनोरम जल की कलाबाजियां।
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रातों की स्याही जब हो जाती गहरी,
सुनसान नदी तट हलचल जब ठहरी,
निरव आकाश में जब चीखें टिटहरी,
अगल बगल गावों में सतर्क बूढे प्रहरी,
बाढ़ के डर से डरी सहमी फिजाएं।
बार बार उजड़ने के अंदेशे सताएं।
पकी हुई फसलों की झूमती बालियां,
डूब ना जाएं कहीं कृषकों की आशाएं।
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मूसलाधार वर्षा संग तूफानी हवाएं,
नदी के कटाव से दरकती फिजाएं,
खौफनाक विपदा में बैल बकरी,गायें,
तरमिस की काट से भयभीत दिशाएं।
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ऐसा समय हर साल सबको सताएं,
तीन माह दहसत के कैसे हम बिताएं।
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इठलाती लहरों पर सूरज की रश्मियां,
रातों में झिलमिल चांद की सोखियां।
सावन व भादो के झूलों पर झूलती,
चंचल नदियों की चपल धवल मस्तियां।
मदमाती गीत गाये बिना थके हर पहर,
कितना मनोरम जल की कलाबाजियां।
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रातों की स्याही जब हो जाती गहरी,
सुनसान नदी तट हलचल जब ठहरी,
नीरव आकाश में जब चीखें टिटहरी,
अगल बगल गावों में सतर्क बूढे प्रहरी,
बाढ़ की डर से डरी सहमी फिजाएं।
बार बार उजड़ने के अंदेशे सताएं।
पकी पकी फसलों की झूमती बालियां,
डूब ना जाएं कहीं कृषकों की आशियां।
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मूसलाधार वर्षा संग तूफानी हवाएं,
नदी के कटाव से दरकती फिजाएं,
खौफनाक विपदा में बैल बकरी,गायें,
तरमिस की काट से भयभीत दिशाएं।
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ऐसा समय हर साल सबको सताएं,
तीन माह दहसत के कैसे हम बिताएं।
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-Mukteshwar Prasad Singh