विषय - पलकों पर निंदिया
दिनांक-03/07/2022
स्वप्न सलोने आंखों में बसाकर,
निंदिया रानी के पास जाना है।
अपने प्रियतम से मिलने को,
ख्वाबों में उन्हें बुलाना है।।
हैं वो मुझसे इतने दूर कि,
मिलना असंभव सा लगता है।
पर पलकों की निंदिया में वो,
हरदम साथ मेरे ही रहता है।।
उनकी तस्वीर आंखों में बसाकर,
निंदिया रानी को हम बुलाते हैं।
हकीकत में न सही,पर स्वप्न में,
हमसे रोज ही मिलने वो आते हैं।।
ख्वाबों में कई सारी बातें,
साथ में दोनों मिलकर करते हैं।
थामकर एक दूसरे के हाथ को,
घंटों एक दूसरे को देखा करते हैं।।
मधुर मिलन की ख्वाबों की रात,
कितनी जल्दी देखो बीत जाती है।
सूरज की किरणें पड़ने पर,
बातें अधूरी ही रह जाती हैं।।
पता नहीं क्यों सूरज की तपिश से,
चांदनी रात जल्दी ढल जाती हैं।
कुछ अनकही बातें बीच में छूटकर,
नींद मेरी जल्दी खुल जाती हैं।।
कुछ सपनों को पलकों में दबाकर,
रात की बांट अब जोहना है।
दिनभर उनकी यादों के साथ,
रात में उनके ख्वाबों के साथ होना है।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री