*वृष्टि,धाराधर,बरसात,प्यास,पुष्करिणी*
1 वृष्टि
ग्रीष्म काल के बाद ही, होती अमरित *वृष्टि*।
धरा स्वयं शृंगार कर, रचे अनोखी सृष्टि।।
2 धाराधर
इन्द्र देव ने ले रखा, *धाराधर* का भार।
प्राणी हैं निश्चिंत सब, ईश्वर ही आधार।।
3 बरसात
यह मौसम *बरसात* का, करता है फरियाद।
प्रियतम का हो साथ तब, दूर हटें अवसाद।।
4 प्यास
*प्यास* अधूरी रह गयी,बिछुड़ गए फिर श्याम।
ब्रज की रज व्याकुल हुई, छोड़ चले ब्रजधाम।।
5 पुष्करिणी
*पुष्करिणी* के ताल में, खिलें कमल अनमोल।
नंदी के मुख से बहे, अविरल अमरित घोल।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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