ज़िंदगी के सवालों में उलझी
एक अबूझ पहेली जो कभी न सुलझी
एक की गलती नज़रंदाज़ कर दी जाती है ,
तो एक की गलती पर नज़र रखी जाती है ।
जिस घर में बेटी और बहू की तुलना की जाती है
एक - दूजे का स्नेह सिमटकर खाई - सी बन जाती है
सास - बहू की टकराहट में फ़ज़ीहत पति की होती है
दोनों में भेद करे तो तुच्छ विचारों से ही टक्कर होती है
जब बेटी प्यारी होती है तो बहू कैसे न्यारी बन जाती है ?