कुछ नेता गण पालते, अपने मन में भ्रांति।
अनय बढ़े जब चरम पर, तब होती है क्रांति।।
ताकतवर होती कलम, करे शत्रु पर वार।
मानव हित रक्षा करे, दे सद्बुद्धि विचार।।
हुए कूप मंडूक हैं, कुछ नेता गण आज।
धरती से अब कट गए, समझ न पाए राज।।
चला देश में है गलत, स्वर विरोध का आज।
आगजनी, पत्थर चलें, कब आएगी लाज।।
सरकारी संपत्ति का, जो करते नुकसान।
अब उनकी ही जेब से, होता है भुगतान।।
कर दाता हैं देश के, प्रगति हेतु दें दान।
आग लगा कुछ तापते, कैसे हैं शैतान।।
राह अग्निपथ की चुनें, यह संकट का काल।
तन मन से चैतन्य हो, सजग रहें हर हाल ।।
सबका यह कर्तव्य है, करें देश कल्याण।
जो भी इससे विमुख हों, उनको देवें त्राण।।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज