में कौन हू? खुद से खुद को नही पहचानती,
कोई रेत जैसी फिसल रही हू,
बंदी हुयी कड़िया इतनी तेज है की अब तो इनकी आदत सी हो गयी है,
कोई चाहत नही, कोई राह नही बस अंदर हि अंदर दबी दबी सी रहती हू,
हा.... लेकिन एकदिन जरूर उड़ना सिख लूंगी अपने आपसे बाते करना भी,
बेखौफ आज़ाद रहना है मुझे, अपने आपको पहचानना है मुझे मे कौन हू? एक सपना, एक ख्वाहीश,एक रास्ता सौ काबिलियत,और एक उलझी हुयी ज़िंदगी
-Piya