पिता का दिन (पितृ दिन)
“बेशक पिता लोरी नहीं सूनाते
मां की तरह आंसू नहीं बहातें
पर दिनभर की थकान के बावजूद
रात का पहरा बन जाते है
और जब निकलते है सुबह
तिनको की खोज में
किती के खीलौने
किसी की किताबें
किसी की मींठाइ
किसी की दवाइ
परवाज पर होते हैं घर भर के सपने
पिता कब होते है खुद के अपने ?”
…….अज्ञात