शीर्षक : देह-मंत्र
देह से मुक्त होती जिंदगी की वासनायें
कह रही साथ कुछ भी तुम्हारे न जाये
तुम कह रहे जिसे अपना यहीं रह जाये
आत्मिक-कर्म ही आगे नया स्थान पाये ।।
साँसों से जुड़े प्राणों के तार जब टूट जाये
बंधन मोह के सब इस जहाँ में रह जाये
क्षल-कपट की जिंदगी खुद से ही शरमाये
देह की हसरतें आत्मा को मलिन कर जाये ।।
सोच यही सही जीवन धवल ही रह जाये
संयम के फूल आत्मा के गुलशन को सजाये
देह की सुंदरता कभी कांटो सी न हो जाये
अँहकार की धुंध में गलत कर्म नजर न आये ।।
रैन बसेरा है ये जग क्योंकि जीवन एक यात्रा है
मंजिल-राही बनकर चलना, ये एक ही सूत्र है
आत्मा ही लिफाफा है शरीर तो सिर्फ एक पत्र है
पता कहाँ का होगा ? जानने का कर्म ही मंत्र है ।।
✍️ कमल भंसाली