#hindiurdu poetry
हर रोज पंखुड़ियँ को
गेसु-ए-महबूब समझ सहलाते हैं,
बादलों के पीछे शर्म से डूबे
मेहताब मे तेरी सूरत तलाशते हैं
तू इधर उधर दिख जाए इसलिए रह-ए-महबूब की तलब रखते हैं
तेरी खुशबू सूंघने ने की चाहत हर इत्र को ठुकराते हैं
आरजू तुम्हारी है इसलिए हाजत-ए-रफ़ू
गैरों की महफिलों नहीं ढूंढते हैं
इस जिंदगी के मे'यार मे बस तेरे साथ की चाहत रखते है
Deepti