Hindi Quote in Poem by shekhar kharadi Idriya

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ठिकठाक से
भोंदू से दिखते हैं
तेरे पागल इश्क़ में
खुद को रूलाकर ,
आंसू जो बहाते हैं
तेरे शहर में आकर ,
वो लुढ़क-लुढ़क कर
बहते रहें, रेंग-रेंग कर
गली-मुहल्ले में जाकर
क्या खूब कहते हैं ?
हमारे प्यार के क़िस्से
टेढ़े-मेढ़े मोड़ पे रुककर ,
जरा फ़िक्र किसीको हैं
तसल्ली से सुनने में यहां
जो हुएं हैं नीलाम सरेआम
उन्हें जरा सा ख़्याल कैसा
फ़िलहाल नज़रें हटाकर ,
दो घड़ी फुर्सत कहा है ?
साफतौर सीधा मिलकर
रू-ब-रू फितूर पढ़कर ,
गुफ्तगू करने के लिए
वर्ना बेवजह ही..,
रोज़मर्रा घायल जो हुए
गैरों के खंजर से
मतलबी रवैए से ,
इस्तेमाल जो हुए बेख़ौफ़
जिस्म से रूह तलक
लहू का कतरा-कतरा
मांगता है हिसाब
फिर भी परवाह किसको है ?
पलटकर लौट आएं
घाव पर औषधि लगाएं
व्यथा की नदी पीकर ,
समुद्र की गहराई छूकर
रिश्तों की अहमियत समझें ।

-© शेखर खराड़ी
तिथि-३०/६/२०२२, मई

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111808767
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